Monday, 28 August 2017
एक बचपन का जमाना था, जिस में खुशियों का खजाना था.. चाहत चाँद को पाने की थी, पर दिल तितली का दिवाना था.. खबर ना थी कुछ सुबहा की, ना शाम का ठिकाना था.. थक कर आना स्कूल से, पर खेलने भी जाना था... माँ की कहानी थी, परीयों का फसाना था.. बारीश में कागज की नाव थी, हर मौसम सुहाना था.. हर खेल में साथी थे, हर रिश्ता निभाना था.. गम की जुबान ना होती थी, ना जख्मों का पैमाना था.. रोने की वजह ना थी, ना हँसने का बहाना था.. क्युँ हो गऐे हम इतने बडे, इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था..
Saturday, 12 August 2017
Sunday, 6 August 2017
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